शब्द का अर्थ
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धूम :
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पुं० [सं०√धू (कंपन)+मक्] १. आग का धुआँ। २. कुछ विशिष्ट औषधियों आदि को जलाकर उत्पन्न किया हुआ वह धूआँ, जो कुछ रोगों में रोगियों के शरीर या पीड़ित अंग पर पहुँचाया जाता है। ३. अजीर्ण या अपच में आनेवाला धुँआयँध डकार। ४. धूमकेतु। पुच्छलतारा। ५. उल्कापात। ६. एक प्राचीन ऋषी का नाम। स्त्री० [अनु०] १. वह स्थिति, जिसमें बहुत से लोग उत्साहपूर्वक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इधर-उधर आते-जाते, दौड़ते-फिरते और हो-हल्ला मचाते हों। उत्सवों, त्योहारों आदि के समय जन-समूह की उल्लासपूर्ण चहल-पहल। जैसे—आज सारे भारत में स्वराज्य दिवस की धूम है। २. उत्सवों, मेलों, समारोहों आदि के संबंध में पहले से होनेवाला उत्साहपूर्ण आयोजन, ठाठ-बाट और तैयारी। जैसे—शहर में अभी से राष्ट्रपति के आने की धूम है। पद—धूम-धाम। ३. उक्त प्रकार के कामों या बातों के संबंध में लोगों में चारों ओर होनेवाली चर्चा। जैसे—आज शहर में उनकी बारात की सबेरे से ही धूम है। मुहा०—(किसी बात की) धूम मचना=किसी बात की चर्चा चारों ओर फैल जाना। ४. ऐसा उत्पात, उपद्रव, उछल-कूद या धींगा-मस्ती, जिसमें हो-हल्ला भी हो। जैसे—लड़के दिनभर गलियों में धूम मचाते रहते हैं। ५. कोलाहल। शोर। हो-हल्ला। जैसे—निम्न कक्षाओं के लड़के बहुत धूम करते हैं। क्रि० प्र०—मचना।—मचाना। विशेष—पुरानी हिन्दी तथा स्थानिक बोलियों में कहीं कहीं इस शब्द के साथ ‘डालना’ क्रिया का भी प्रयोग होता है। स्त्री० [देश०] तालों में होनेवाली एक प्रकार की घास। |
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धूमक :
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पुं० [सं० धूम+कन्] १. धूआँ। २. एक प्रकार का साग। |
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धूमक-धैया :
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स्त्री० [हिं० धूम] १. ऐसी उछल-कूद और उपद्रव या हो-हल्ला जो अशिष्टतापूर्ण हो और इसी लिए अच्छा न लगे। क्रि० प्र०—मचना।—मचाना। २. दे० ‘धूम-धाम’। |
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धूम-केतन :
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पुं० [ब० स०] १. अग्नि। आग। २. धूमकेतु। पुच्छलतारा। |
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धूम-केतु :
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पुं० [ब० स०] अग्नि, जिसका पताका धूआँ है २. शिव का एक नाम। ३. रावण की सेना का एक राक्षस। ४. ऐसा घोड़ा जिसकी दुम पर भौंरी हो। (ऐसा घोड़ा ऐबी या दूषित समझा जाता है)। ५. एक प्रकार का केतु या तारा, जिसमें पीछे की ओर दूर तक झाड़ू की तरह बहुत लंबी दुम लगी होती है। पुच्छलतारा। (कामेट) |
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धूम-गंधिक :
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पुं० [धूम-गंध, ब० स०, इत्व, धूमगन्धि+कन] रोहिष तृण। रूसा घास। |
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धूम-ग्रह :
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पुं० [मध्य० स०] राहू नामक ग्रह। |
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धूमज :
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वि० [सं० धूम√जन् उत्पत्ति+ड] धूएँ से उत्पन्न। पुं० १. बादल या मेघ जो धुएँ से उत्पन्न माना गया है। २. मुस्तक। मोथा। |
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धूम-जांगज :
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पुं० [सं० धूमज-अंग ष० त०, धूमजांग+जन्√ड] नौसादर। |
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धूम-दर्शी (र्शिन्) :
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पुं० [सं० धूम√दृश (देखना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे आँखों के दोष के कारण सब चीजें धुँधली दिखाई देती हैं। |
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धूम-धड़क्का :
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पुं० [हिं० धूम+अनु० धड़क्का] आनंद, प्रसन्नता, हर्ष आदि के कारण होनेवाली चहल-पहल और हो-हल्ला। |
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धूम-धर :
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पुं० [ष० त०] अग्नि। आग। |
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धूम-धाम :
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स्त्री० [हिं० धूम+धाम (अनु०)] उत्साह तथा उल्लास से युक्त होनेवाला ऐसा आयोजन या तैयारी, जिसमें खूब चहल-पहल और ठाठ-बाट हो। पद—धूम-धाम से=ठाठ-बाट और सज-धज के साथ। जैसे—धूम-धाम से जलूस, बरात या सवारी निकलना। |
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धूमधामी :
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वि० [हिं० धूमधाम] १. धूम-धाम से काम करनेवाला। २. धूम-धाम या आडम्बर से युक्त। जैसे—धूमधामी आयोजन या समारोह। ३. नटखट। उपद्रवी। |
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धूम-ध्वज :
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पुं० [ब० स०] अग्नि। आग। |
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धूम-नेत्र :
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पुं०=धूम्र-नेत्र। |
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धूम-पट :
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पुं० [ष० त०] १. धूएँ की वह दीवार, जो युद्ध क्षेत्र में विपक्षियों की नजर से अपनी तोपें आदि छिपाने के निमित्त खड़ी हो जाती थी। २. वास्तविक स्थिति या तथ्य छिपाने के लिए उसके सामने खड़ी की जानेवाली कोई आड़ या परदा। (स्मोक स्क्रीन) |
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धूम-पथ :
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पुं० [मध्य० स०] १. वह रास्ता जिससे किसी स्थान का धूआँ बाहर निकलता हो। धुआँरा। २. दे० ‘पितृयान’। |
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धूम-पान :
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पुं० [ष० त०] १. साधुओं आदि का आग के कुएँ में पड़े रहना। २. सुश्रुत के अनुसार कुछ विशिष्ट प्रकार की औषधियों का धुआँ जो नल द्वारा रोगी को सेवन कराया जाता था। ३. तमाकू, सुरती आदि को सुलगाकर (नशे आदि के लिए) बार-बार खींचकर मुँह में लेना और बाहर निकालना। तमाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि पीना। |
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धूम-पोत :
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पुं० [मध्य० स०] धूएँ या भाप की सहायता से समुद्र में चलनेवाला आधुनिक ढंग का जहाज। धूआँ-कश |
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धूम-प्रभा :
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स्त्री० [ब० स०] नरक, जो सदा धुएँ से भरा रहता है। |
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धूम-यान :
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पुं० [ब० स०] पुराणानुसार,पृथ्वी के नीचे की ओर का वह मार्ग जिससे होकर पापियों की आत्माएँ नीचे या अधःलोक की ओर जाती हैं। |
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धूम-योनि :
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पुं० [ब० स०] बादल, जिसकी उत्पत्ति धूएँ से मानी गई है। |
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धूमर :
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वि०=धूमिल। |
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धूम-रज (स्) :
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पुं० [ष० त०] १. घर का धुआँ। २. छतों और दीवारों में लगनेवाली धूएँ की कालिख। |
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धूमरा :
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वि०=धूमर (धूमिल)। |
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धूमरी :
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स्त्री० १. धूम। २. =धूम्र।a |
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धूमल :
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वि० [सं० धूम√ला (लेना)+क] धूएँ के रंग का। लाली लिये काले रंग का। वि०=धूमिल।a |
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धूमला :
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वि०=धूमिल।a |
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धूमवान (वत्) :
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वि० [सं० धूमवत्] [स्त्री० धूमवती] जिसमें या जहाँ धूआँ हो। धूएँ से युक्त। |
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धूमसार :
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पुं० [ष० त०] घर का धूआँ। |
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धूमसी :
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स्त्री० [सं०] उरद का आटा या चूर्ण। धुआँस। |
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धूमांग :
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वि० [धूम-अंग ब० स०] धुएँ के रंग के-से अंगोंवाला। पुं० शीशम का पेड़। |
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धूमाक्ष :
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वि० [धूम-अक्षि ब० स०, अच्] [स्त्री० धूमाक्षी] जिसकी आँखें धुएँ के रंग जैसी हों। |
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धूमाग्नि :
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स्त्री० [धूम-अग्नि मध्य० स०] ऐसी आग जिसमें धूआँ ही निकलता हो, लपट न उठती हो। |
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धूमाभ :
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वि० [धूम-आभा ब० स०] धूएँ के रंग जैसा। |
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धूमायन :
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पुं० [सं० धूम+क्यङ+ल्युट्—अन] १. धूआँ उठाना या उत्पन्न करना। २. किसी चीज को ऐसा रूप देना कि वह भाप बनकर उड़ने लगे। ३. गरमी। ताप। |
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धूमायमान :
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वि० [सं० धूम+क्यङ+शानच्, मुक्] १. जो धूएँ के रूप में हो। २. धूएँ से भरा हुआ। धूएँ से युक्त या व्याप्त।a |
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धूमाली :
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स्त्री० [सं० धूम+आली] आकाश में चारों ओर छाया हुआ धूआँ। उदा०—माली की मड़ई से उठ नभ के नीचे नभ सी धूमाली। |
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धूमावती :
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स्त्री० [सं० धूम+मतुप्—ङीप्-वत्व, दीर्घ] दस महाविद्याओं में से एक। |
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धूमिका :
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स्त्री० [सं० धूम+ठन—इक्, टाप्] कोहरा। |
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धूमित :
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वि० [सं० धूम+इतच्] १. धूएँ से ढका हुआ। २. जिसमें धूआँ लगा हो। पुं० तंत्र-शास्त्र में, सादे अक्षरों का मंत्र जो दूषित समझा जाता है। |
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धूमिता :
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स्त्री० [सं० धूमित+टाप्] वह दिशा जिसमें सूर्य पहले-पहल उन्मुख या प्रवृत्त होता हो। |
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धूमिनी :
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स्त्री० [सं० धूमिन्+ङीप्]=धूमी। |
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धूमिल :
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वि० [सं० धूम+इलच्] १. धूएँ के रंग का। लाली लिए काले रंग का। २. जिसमें इतना कम प्रकाश हो कि साफ दिखाई न पड़े। धुँधला। ३. मलिन। गंदा। |
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धूमि (मिन्) :
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वि० [सं० धूम+इनि] धूएँ से भरा हुआ। स्त्री० १. अजमीढ़ की एक पत्नी का नाम। २. अग्नि की एक जिह्वा का नाम। |
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धूमोत्थ :
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वि० [सं० धूम-उद√स्था (ठहरना)+क] धूएँ से निकला हुआ। पुं० नौसादर। वज्रक्षार। |
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धूमोद्गार :
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पुं० [धूम-उद्गार ष० त०] अजीर्ण या अपच के कारण आनेवाला धूएँ का-सा खट्टा डकार। |
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धूमोपहत :
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भू० कृ० [धूम-उपहत तृ० त०] धूएँ के फलस्वरूप जिसका गला घुट गया हो। पुं० एक तरह का रोग। |
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धूमोर्णा :
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स्त्री० [सं०] १. यम की पत्नी का नाम। २. मार्कण्डेय की पत्नी का नाम। |
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धूम्या :
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स्त्री० [सं० धूम+य—टाप्] १. धूम-पुंज। २. धूएँ का गहरा और घना बादल। |
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धूम्याट :
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पुं० [सं० धूम्या√अट (गति)+अच] एक पक्षी। भृंग। |
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धूम्र :
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वि० [सं० धूम√रा (देना)+क, पृषो० सिद्धि] धूएँ के रंग का। लाली लिए काले रंग का। पुं० १. धूएँ का या धूएँ का-सा रंग। लाली लिए काला रंग। २. मानिक लाल या धुँधलापन जो एक दोष माना गया है। ३. महादेव। शिव। ४. कार्तिकेय का एक अनुचर। ५. राम की सेना का एक भालू। ६. फलित ज्योतिष में एक प्रकार का योग। ७. मेढ़ा। 8.शिलारस नामक गंध द्रव्य। |
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धूम्रक :
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पुं० [सं० धूम्र√कै (प्रकाशित होना)+क] ऊँट। |
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धूम्र-काँत :
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पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का रत्न या नग। |
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धूम्र-केतु :
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पुं० [ब० स०] राजा भरत के एक पुत्र का नाम। (भागवत) |
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धूम्र-केश :
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पुं० [ब० स०] १. राजा पृथु का एक पुत्र। २. कृष्णाश्व का एक पुत्र, जो उसकी अर्चि नाम की स्त्री से उत्पन्न हुआ था। (भागवत) |
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धूम्र-नेत्र :
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पुं० [ब० स०] छत या दीवार में से धूआँ निकलने का छेद। धुआँरा। धूआँदान। |
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धूम्र-पट :
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पुं०=धूमपट। |
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धूम्र-पत्रा :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] एक प्रकार का पौधा जो आयुर्वेद में तीता, रुचिकारक, गरम, अग्निदीपक तथा शोथ, कृमि और खाँसी को दूर करनेवाला माना गया है। सुलभा। गृध्रपत्रा। |
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धूम्र-पान :
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कुं०=धूम-पान। |
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धूम्र-मूलिका :
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स्त्री० [ब० स०, कप्, टाप्, इत्व] शूली नामक तृण। |
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धूम्र-लोचन :
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पुं० [ब० स०] १. कबूतर। २. शुंभ दानव का एक सेनापति। |
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धूम्र-वर्ण :
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वि० [ब० स०] धूएँ के रंग का। ललाईपन लिए काला। धूमिल। पुं० उक्त प्रकार का रंग। |
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धूम्रवर्णा :
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स्त्री० [सं० धूभ्रवर्ण+टाप्] अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। |
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धूम्रा :
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स्त्री० [धूभ्र+अच्—टाप्] एक प्रकार की ककड़ी। |
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धूम्राक्ष :
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वि० [धूभ्र-अक्षि ब० स०, अच] जिसकी आँखें धूएँ के रंग की हों। पुं० रावण का एक सेनापति। |
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धूम्राट :
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पुं० [सं० धूभ्र√अट् (गति)+अच्] धूम्याट पक्षी। भिंगराज। |
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धूम्राभ :
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पुं० [धूम्र-आभा ब० स०] १. वायु २. वायुमंडल। |
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धूम्रार्चि (स्) :
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स्त्री० [धूम्र-अर्चिस ब० स०] अग्नि की दस कलाओं में से एक। |
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धूम्राश्व :
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पुं० [धूम्र-अश्व ब० स०] इक्ष्वाकु वंशीय एक राजा। |
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धूम्रिका :
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स्त्री० [सं०धूम्रा+कन्—टाप्, हृस्व, इत्म] शीशम की तरह का एक प्रकार का पेड़। |
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धूम्रीकरण :
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पुं० [सं० धूम्र+च्वि; ईत्व√कृ (करना)+ल्युट्—अन] (रोग के कीटाणुओं से मुक्त करने के लिए या हवा की गंदगी दूर करने के लिए) कमरे आदि में सुगंधित धूप, संक्रमणनाशक वाष्प आदि प्रसारित करना। (फ्यूमिगेशन) |
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